Kundalini yoga and Kundalini chakra shakti-कुण्डलिनी योग एवं कुण्डलिनी शक्ति

  Kundalini yoga

 

 

We will discuss some of points related with kundalini like kundalini yoga, kundalini awekening ,kundalini mediatation and kundalini chakra in this blog

 

 

  कुंडलिनी योग (Kundalini yog) के  दौरान कई साधकों को कई प्रकार की क्रियाएं होती हैं इसका क्या  कारण है ?

 

  महापुरुषों की संप्रेषण शक्ति के द्वारा प्राण उत्थान होता है,फिर शक्ति जागृत होती है ,फिर ध्यान करना नहीं पड़ता वह स्वयं होने लगता है। अनंत जन्मों के एवं इस जन्म के भी कुछ संस्कारों की परतें खुलने लगती हैं। बहुत लोग कहते हैं योगी, तपस्वी, साधक प्रारंभ में टेढ़े मेढ़े मार्ग से जाते हैं लेकिन जब यह राजमार्ग मिलता है तो परम पद को पाना आसान हो जाता है।

Kundalini yoga and kundalini chakra

 

जब कुंडलिनी (kundalini)  जागृत होती है तो इसका चित्त दबा हुआ हो,अनुचित अनुशासन सहनक्रिया हुआ हो , वैसे चित्त दबाया हुआ रुदन, दबाई हुई शिकायतें प्रतिक्रिया स्वरूप रुदन के रूप में बाहर निकलती हैं अथवा दबा हुआ विरह भी रुदन के रूप में बाहर निकलता है जो दबे हुए संस्कार हैं वे रुदन के रूप में निकल जाते हैं  तो भविष्य में हिस्टीरिया होने की संभावना नहीं रहती है ,मानसिक तनाव पागलपन आने की संभावना नहीं रहती है।

 

कुंडली जागृत होने पर कई साधक हंसते हैं, कई नृत्य करते हैं, कई बोलते हैं यह सब योग क्रियाएं हैं। कुंडली के जगने पर नाड़ी शोधन होता है। यह कुंडलिनी(kundalini) शक्ति तन मन के विकारों के निर्मूलन के लिए, साधक के रोम  की शुद्धि के लिए आसन, प्राणायाम, मुद्राएं आदि करवाती हैं।

Kundalini yoga and kundalini chakra

 

आइए जाने की टोने टोटके वाले साधकों में और कुंडलिनी योग के साधकों में क्या अंतर है?

 

टोने-टोटके आदि वालों के पास जैसे जैसे लोग जाते हैं, वैसे वैसे उनका आहार-विहार अशुद्ध अपवित्र होता जाता है और एवम कुंडलिनी(kundalini) योग शाशक की  कुंडली सक्रिय होती है और  आहार  विहार पवित्र होता है, और उनकी मौन एवं एकांकी रुचि होती है।

 

टोने टोटके वालों को तंबाकू चाय शराब काम विकार आदि की रुचि होती है जबकि कुंडली के साधक को संसार के भोग और ऐश आराम भी फीके लगते हैं।

 

जानिए क्या क्या होता है कुंडलिनी (Kundalini)जाग्रत में?

Kundalini yoga and kundalini chakra



मान लो किसी की नाभि के पास की नस नाड़ियों का शोधन होता है तब ध्यान में उस महामाया कुंडलिनी(kundalini) शक्ति के द्वारा कूदने पाने की क्रियाएं होने लगती हैं। ऐसे में दस्त और उल्टी भी हो सकती है और विजातीय द्रव्य शरीर से बाहर निकल जाते हैं शरीर फूल जैसा हल्का हो जाता है।

 

 मान लो ,नेत्रों में कोई ऐसा विजातीय द्रव्य है जो तंदुरुस्ती के विरुद्ध है ,तो नेत्रों की क्रियाएं होने लगेंगी और रुदन होने लगेगा। रुदन के आंसू द्वारा वे विजातीय द्रव्य बाहर निकल जाएंगे। यदि कोई यह द्रव निकालने बैठे तो ना निकलेंगे, डॉक्टर ऑपरेशन करके भी ना निकाल पाएंगे, लेकिन कुंडली के द्वारा वे सहज में ही निकल जाएंगे।

 

 प्राण उत्थान की क्रिया जब तक मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर चक्र तक होती है तब तक शरीर के नीचे के भाग के आसन होते हैं। अनाहत चक्र में कभी रुदन, कभी हास्य आदि क्रियाएं होती हैं। जब विशुद्धख्या चक्र पर कुंडलिनी (kundali)शक्ति कार्य करती है तब ध्यान के समय गर्दन ऊपर होने लगती है। जब आज्ञा चक्र का शोधन होता है तब देवी देवता के दर्शन, गुरु के संकेत आदि मिलते हैं और जब कुंडलिनी (kundalini) शक्ति सहस्रार में कार्य करती है तो जैसे कागज पर लोहे के बारीक कण रखो और उसके नीचे लोह चुंबक घुमाओ तो लोहे के खड़े हो जाते हैं ऐसी क्रियाएं होती है। यह सारी क्रियाएं शास्त्रों में वर्णित हैl

 

आइंस्टाइन का मस्तिष्क एक सामान्य मनुष्य की अपेक्षा ज्यादा विकसित था। इसलिए वह एटम  विज्ञान की खोज कर सका। उसके दिमाग के सभी ज्ञान तंतु सक्रिय नहीं हुए थे फिर भी मनुष्य के मस्तिक को भी आश्चर्य हो जाए ऐसी खोजें उसने की। उसका मस्तक लगभग 10 से 12% विकसित था और आम आदमी का मस्ती लगभग 2 से 3% ही विकसित होता है। उससे अधिक प्रतिशत के विकसित मस्तक के धनी भी होते हैं।

 

सुचारु रुप से जप ध्यान आदि की शुष्म यात्रा करने वालों के अनाहत और सहस्रार केंद्र का विकास होता है। सिद्धियों और निधियों हाजिर हो जाती हैं। ऐसे कई रिद्धि-सिद्धि के धनी योगी हुए हैं, जिसमें हनुमान जी, ज्ञानेश्वर महाराज आदि जन्मजात योग संपन्न आत्माएं थी, फिर भी तत्वज्ञान के लिए ,पूर्णता पाने के लिए,आत्म साक्षात्कार के लिए उनसे भी ऊंची अवस्था में स्थित भगवान श्री रामचंद्र जी के चरणों में हनुमान जी ,निवृत्ति नाथ जी के चरणों में  नतमस्तक हुए थे।

 

कुछ साधक सीधे तो तत्व ज्ञान का मार्ग लेते हैं, तो कुछ सिद्धि के मार्ग से गुजर कर यात्रा करते हैं। बहुत सारे वहीं रुक जाते हैं और लोक अनुरंजन में लगे रहते हैं

 

ज्ञानेश्वरी गीता के छठे अध्याय में इस महान योग का वर्णन किया गया है। कुंडलिनी(kundalini) जागरण होते ही साधक को आश्चर्य कार्य अनुभव एवं क्रियाएं होने लगती हैं। इसी आशय से भगवान श्री रामचंद्र जी के गुरु वशिष्ठ जी का बाल्मीकि रामायण में उल्लेख आता है।

 

श्री योग वशिष्ठ महारामायण में भी काग भुसुंडि जी वशिष्ठ जी के संवाद में प्राण कला की बात आती है। कुंडलिनी (kundalini)योगा निषद में भी इसकी भारी महिमा आती है। यह योग अति प्राचीन रसमय,सहज स्वाभाविक एवं सलामत योग मार्ग है। यदि कोई ईश्वर तक की यात्रा पूर्णा भी कर पाए तो भी इस योग के पथिक की ऐसी क्षमता विकसित हो जाती है कि वह अनपढ़ होते हुए भी पढ़े हुए को पढ़ा सकता है, निर्धन होते हुए भी धन वालों को धन एवं शांति का दान कर सकता है। कोई पद कोई अधिकार ना होते हुए भी बड़े बड़े पद अधिकार वाले उसके चरणों में मस्तक झुकाकर अपना भाग्य बना लेते हैं।

 

ऐसी महिमा है इस शरणागति योग की आहार विहार की शुद्धि और ध्यान में रुचि रखने वालों का भी ध्यान योग अपने आप होने लगता है। विडंबना तो यह है कि ऐसी करुणा कृपा बरसाने वाले समर्थ सदगुरुदेव होते हुए भी लोगों की रुचि नहीं है यही कलयुग का प्रभाव है। लोगों की मति गति नश्वर खिलौने में, बाहर के चिंतन में ऐसी उलझ गई है कि वे ऐसे संत के मिलने पर भी अपने भीतर के ताले खोलने में नहीं लग जाते हैं!

 

 कबीर ,मीरा, रामकृष्ण परमहंस नरेंद्र के जीवन में इसी कुंडलिनी योग के प्रसाद की खबरें मिलती हैं। चाहे आप किसी भी क्षेत्र में हो विवेकानंद की तरह सन्यासी हो अथवा आपकी जीवन मीरा या कबीर के तरह हो तो यह यात्रा करने के आप अधिकारी हैं। तत्वरतापूर्वक लग जाए तो रुचि बढ़ती जाएगी प्रीति बढ़ती जाएगी और सहज रहस्य खोलते जाएंगे।

 

सहस्रार चक्र की साधना हो तो ज्ञान तंतुओं के विकास का प्रतिशत बढ़ता जाता है। अनपढ़ व्यक्ति भी पढ़े हुए को प्रभावित कर सकता है और उन्हें सुख के सागर की तरफ ले जा सकता है। ऐसी आभा वहां उत्पन्न होती है

Kundalini yoga and kundalini chakra

 

यह कुंडली योग सिद्धि योग है सहज योग है इसमें कई सिद्धियां होती है कई चमत्कार होते हैं लेकिन उसमें फंसना नहीं चाहिए। कुंडली योग के द्वारा अंतःकरण शुद्ध होता है और शुद्ध अंतःकरण में ही परमात्मा को पाने की जिज्ञासा होती है। परमात्मा को पाने की जिज्ञासा  जितनी तेज होती है उतनी ही तक पहुंच पाता है अर्थात् परमात्मा का ज्ञान पा सकता है और कुंडलिनी योग का यही वास्तविक लक्ष्य है।

 

 Images source Unsplash.com


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